गीत - 4
साये पूछते हैं हमें रात में
क्या खता हुई थी मुलाकात में
रुसवाई की मैं सोच नहीं सकता
आपका हाथ थामा है हाथ में
साये पूछते हैं हमें रात में,,,,,
गुलाबी रुत की बेरुखी और ताने
बोलो कहाँ जाये अब तेरे दिवाने
सबा भी जैसे मुंह फेरती हो
ज़रा मज़ा नहीं इस बरसात में
साये पूछते हैं हमें रात में,,,,,
उन दीवारों के कान बड़े पतले
दिल मचले तो भला कैसे मचले
पानी भी जो फूंक के पीना पड़े
इक बेकसी बची है हयात में
साये पूछते हैं हमें रात में,,,,,
हर लम्हे की अजब कहानी
रु-ब-रु होती रहती हैरानी
दिल न बहलायेंगे ऐसे मंज़र
ग़म दस्तक दे इन हालात में
साये पूछते हैं हमें रात में,,,,,
हर साया अपनी अलग ही कहानी बयाँ करता है ...बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
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