Thursday, September 11, 2014

मासूम ख़लक़त

मासूम ख़लक़त


ग़रज़ की मारी दुनियाँ हर कीमत अदा करती है।
मुसीबत के वक़्त ही खुदा को याद करती है ।।


यूँ तो तरकश में लाखों तीर सजा रक्खे हैं,
तलाश इक मौके की मिलते ही वार करती है। 


जज़्बात, वफ़ा, प्यार भी तो सारे हथियार हैं,
जाल बुनकर धोखे से सबका शिकार करती है।


ज़िन्दगी में चार सू तिज़ारत मिलेगी आपको,
मोहब्बत से कहाँ ये क़ायनात खुद चलती है। 


पीरों, फकीरों की रहनुमाई, प्यार सर आँखों पर,
लेकिन हर कूचे में ढोंगियों की दुकां खूब चलती है। 


कश्मकश में डूबा बशर कहाँ किसी दे दस्तक,
मासूम ख़लक़त "रत्ती" हर लम्हा मरती है। 
 

No comments:

Post a Comment