Monday, September 22, 2014

गीत न. २

गीत न. २
 
जाने कब आता है, जाने कब जाता है।
निरमोहिया है वो, बहुत सताता है।।
 
समझ के भी रोज़-रोज़ नासमझी करे,
ऐसी हरकतों से होते दिल के घाव हरे ,
मीठी-मीठी बातों से उल्लू बनता है
 
नैनो की भाषा जाने इशारों को पहचाने,
खता पे खता करे बात कभी न माने ,
खुद हँसता रहता है मुझको रुलाता है
 
दूरियों के साये न हों आसपास कहीं ,
मंज़िल मेरी भी वही जो तूने चुनी ,
दो दिलों का संगम हो तो बड़ा मज़ा आता है
 
माना था उसे रहबर हरपल साथ देगा ,
मेरी तमन्नाओं का वो ख्याल रखेगा ,
"रत्ती" हरजाई बना जब से मेरा जी घबराता है

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