Sunday, September 2, 2018

"ये वक़्त"

हरपल सवालों में हमें उलझता है
ये वक़्त रोज़ सबको खूब नाचता है
क्या राहें  आसां  न होंगी कभी,
ग़मों का कारवाँ आगे बढ़ जाता है

रहने भी दो ऐसी दिलासों की बातें
दिल टूटे हैं क्या करेंगी मुलाक़ातें 
कोई दुखी को नहीं गले लगता है

अपनी-अपनी सोच से सब दूर हो गये
कुछ उनके कुछ मेरे सपने चूर हो गये
क्या ऐसे में मन को को भाता है

क्यों ख़ाक पे बैठी हीरे सी ज़िन्दगी
क्यों फैली बदबू ज़हन में गंदगी
"रत्ती" कोई प्यार के जुमले नहीं सुनाता है

हरपल सवालों में हमें उलझता है
ये वक़्त रोज़ सबको खूब नाचता है
क्या राहें  आसां  न होंगी कभी,
ग़मों का कारवाँ  आगे बढ़  जाता है

दर्पण के पन्नों  से

  

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