अहवाले बशर
ये नुक्स-ए-आबो-हवा देखी ज़माने में,
सदियां लग जाती लोगों को समझाने में
ये दौर-ए-गर्दिश है, इम्तहां लेता सबका,
हर शख्स मसरूफ नसीबा चमकाने में
यहां जुर्म को बेरोकटोक रक्स करते देखा,
इंसाफ को शर्म आयी रू- ब- रू आने में
कम लिबास में हूरें उड़ती हैं इन फ़ज़ाओं में,
नग्नता गली - गली में भलाई मुंह छिपाने में
अफ़साना - ए - फुरक़त न दोहराओ तुम,
बहोत मज़ा आता उनको सितम ढाने में
माज़ी की खता से माकूल कदम उठाये न,
तजुर्बा रायगां हयात के शामियाने में
"रत्ती" अहवाले बशर न पूछो तुम हमसे,
उलझा रहता रात-दिन दौलत कमाने में
शब्दार्थ
नुक्स-ए-आबो-हवा = दूषित जलवायु
मसरूफ = व्यस्त, रक्स = नृत्य
अफ़साना-ए-फुरक़त = विरह की कहानी
माज़ी = गुज़रा हुआ समय, माकूल = उचित,
रायगां = व्यर्थ, हयात = जीवन
अहवाले बशर = मानव का हाल
namaste surinder ji...
ReplyDeletepehle to mere blog par aane aur apni tippani dene ke liye shukriya aapka...
ab aapki post ke baare mein kya kahoon...bahut dino ke baad koi kaano ko sukoon dene wali rachna padhi hai...
aafareen...
aate rahiyega!!
आपको और आपके परिवार को वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteवाह बहुत बढ़िया लगा! बहुत खूब !
Aap to gazab achha likhte hain! Wah!
ReplyDelete'Simte lamhen'pe zarranawaazi aur hausla afzayi ka tahe dilse shukriya!Mai na to kavi hun lekhak!
एक उम्दा रचना के लिए बधाई.
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ReplyDeleteek achhi rachna padne ko mili khaas taur pe ye sheyar.."bahut maza aata hai unko sitm dhane mein"... thanks for sharing..
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