Wednesday, September 8, 2010

ख़ुद को बचाया जाये

ख़ुद को बचाया जाये


चलो आसमां को ज़मीं पे लाया जाये,
चांद-तारों से दिल को बहलाया जाये

रातों की ज़ुल्मतों  में ग़मों को ढून्ढें,
दिन के उजाले में दर्द पाला जाये

कांटों की डोली में बैठ के फिर सोचो,
कैसे ज़ख्मों को ज़्यादा उभारा जाये

लहरों के सीने, जिस्म पे नाचते खेलते,
उनके सोये तुफानों को जगाया जाये

सूरज की गर्मी और उठती लपटें पी के,
पेट की बढती आग को मिटाया जाये

इंसां तो जनम से लापरवाही का हबीब,
उसे सलीके से ही सब सिखाया जाये

''रत्ती'' ये सब मुमकीन नहीं होता कभी,
सदा खतरों से खुद को बचाया जाये

4 comments:

  1. Nahi,ham khudko hamesha bacha nahi sakte..sakte to khuda na kahlate?

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  2. पेट की आग को मिटाना....
    सूरज की गर्मी से और लपटों से.....
    सही कहा है....
    अगर हम ऐसा सीख जाते हैं तो कुछ भी मुश्किल न रहेगा....यदि हम दु:ख झेलना सीख जाते हैं उनसे घबराते नहीं बल्कि लोहे को लोहे से काटना सीख लेते हैं...जीना आसान हो जाएगा ।

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  3. kalpanaa ki sundar udaan!...badhaai evam dhanyawaad!

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