बदहाल
ग़मे हिज्र की सूरते हाल न पूछ,
हुआ दिल को कितना मलाल न पूछ
शब भर वहाँ बसी थी खामोशियाँ,
सहर हुई मचा नया बवाल न पूछ
आज़ाद लोगों के वास्ते रोज़ ही,
बुना बेबसी ने एक जाल न पूछ
तू एक गुलाम है चुप ही रहना,
सर झुका कर काम सवाल न पूछ
बिना खता के भी तुझे सज़ा देंगे,
तेरे जिस्म पे न होंगे बाल न पूछ
सर्द आहों में सुलगे हैं जो अरमां,
दिल की तरंगों का उबाल न पूछ
इब्तिदा और इंतिहा में फसा है,
''रत्ती'' दीदा-ए-तर बदहाल न पूछ
Kya haal bayan kiya game hijr ka!
ReplyDeleteआप की रचना 17 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
ReplyDeletehttp://charchamanch.blogspot.com
आभार
pls. apna word verification hata le.
अनामिका
Bahut hee gahre bhav.......
ReplyDeleteKaee bar padee aap kee rachna !
Dil mein utratee gayee !!!
तू एक गुलाम है चुप ही रहना
ReplyDeleteसर झुका कर काम सवाल न पूछ|
बदहाली को अच्छी तरह से अभिव्यक्त कर दिया है आपने
बहुत उम्दा रचना.
ReplyDeleteसर्वोत्कृष्ट !
ReplyDeleteजिस तरह से बयाँ किया हालत- ए- हाल , किस तरह से तारीफ करू की न पूछ ... उम्दा लिखा है आपने
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग में पधारकर उत्साह वर्धन करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद सुरेन्द्र जी
ReplyDelete!! जय श्री श्यामसुन्दर की !!
तू एक गुलाम है तू सवाल न कर ....
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा...