शोला रू
फरिश्ते भी खुल्द से ज़मीं पर नहीं आते,
भूल के भी अपना पता नहीं हमें बताते
बहरे जहाँ बरहम शोला रू नज़र आया,
ऐसी रवायत है यहाँ अश्कों को सजाते
लोग किसी को दिल के क़रीब नहीं लाते,
और राज़ अपना कभी नहीं बताते
फर्द बेसाख़्ता सरसीमगी को पालता,
लज़्ज़तफशां खु़बसूरत चीज़ों को ठुकराते
जाबजा गुनाहगार को आज़ादी है,
गुनाह किसी का देख के नहीं समझाते
ज़रा सी भी शफ़क़त नहीं किसी के दिल में,
रंज - ओ - मेहन को ही चार सू फैलाते
इन्सां कारदां है मगर गुमां करता हैं,
मासूम फरर्माबरदार को बहुत डराते
तंग-नज़र, पासदारी की बुनियाद पर बैठे,
पसोपेश में ख़ुद को नहीं लोगों को फसाते
आसेब हैं यहाँ सारे के सारे “रत्ती“,
एक सदाक़त को सात पर्दों में छिपाते
शब्दार्थ
खुल्द = स्वर्ग, बहरे जहाँ = विश्व सागर, बरहम = नाराज़,
शोला रू = आग जैसे चेहरे, फर्द = आदमी, बेसाख़्ता = अनायास,
सरसीमगी = परेशानी, लज़्ज़तफशां = मज़ा देने वाली, जाबजा = जगह-जगह
शफ़क़त = स्नेह, रंज-ओ-मेहन = दुख-दर्द, चार सू = चारों तरफ,
कारदां = अनुभवी, गुमां = शक, संशय, फरर्माबरदार = सेवा करनेवाला,
तंग-नज़र = संकीर्ण विचार, पासदारी = पक्षपात, आसेब = भूतप्रेत, सदाक़त = सच्चाई
दिल को छू जाने वाली कविता....
ReplyDelete१००% सच्च....
लोग किसी को कभी सगा भी नहीं बनाते
अपना दिल खोल किसी को नहीं दिखाते ....
Surinder uncle,
ReplyDeleteHappy Diwali !!
Beautiful Ratti Ji
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