कशमकश
ये ज़ालिम बेकसी क़दम खींचती है
न जाने कहाँ से नये घर ढूंढती है
मेरा बस चले तो दूर ही रहूँ उम्रभर
दिलोदिमाग पे छाई पहरेदार घूमती है
रफ्ता-रफ्ता वक़्त ने कसे हैं शिकंजे
ग़मो से घिरा आदमी भला कैसे हँसे
रह-रह के अब तो सांस भी फूलती है
ज़माने ने भी चुनी अपनी सोची डगर
काम करने से पहले करे वो अगर-मगर
कशमकश में ज़िन्दगी नहीं झूमती है
जलती हुई शम्मा के बुझने से पहले
टूटे-फूटे जुमलों में दुनियां से कह ले
"रत्ती" छीनो न आज़ादी रूह झूलती है
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