उतावले शब्द
सजल नयनों की भाषा
में थी अजीब निराशा
निराशा में छुपा था नवीन सपना
अनदेखा दृश्य कुछ कहानियाँ, बातें
और मस्तक की सिलवटों के पीछे नेत्र
जिनमें बसा था एक शहर
सुनसान
उन अधरों पर थे अनगिनत उतावले शब्द
जो पड़े रहे, अटके रहे
कई दिनों, महीनों
मन बुद्धि के निर्णय की राह तकते
उचित समय की बाट जोहते
क़ैद होकर रह गए
मन की चारदिवारी में
भीतर के घमासान में
पिसते-पिसते धुल हो गए .....
BEHTREEN RACHAA...
ReplyDelete"उन अधरों पर थे अनगिनत उतावले शब्द,
ReplyDeleteजो पड़े रहे,अटके रहे,
कई दिनों,महीनों,
मन,बुद्धि के निर्णय की राह तकते
उचित समय की बात जोहते
कैद हो कर रह गए,
मन की चारदीवारी में,
भीतर के घमासान में
पिसते-पिसते धुल हो गए...."
वाह!
बहुत खूब!
कुंवर जी,